न्यूज़ रिपोर्ट || नकली शराब बनाम अवैध फैक्टरियां: बोकारो में चल क्या रहा है?

न्यूज़ रिपोर्ट || पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’

बोकारो: झारखंड का यह औद्योगिक जिला इन दिनों अवैध शराब के खिलाफ मुहिम का केंद्र बना हुआ है। बीते कुछ सप्ताहों में जिला प्रशासन द्वारा नकली शराब बनाने वाली कई मिनी फैक्टरियों को ध्वस्त किया गया है। जिला सूचना कार्यालय से प्राप्त प्रेस विज्ञप्तियों में इस कार्रवाई को प्रशासन की बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत किया गया है, और इसमें कोई शक नहीं कि बोकारो के उपायुक्त की यह पहल प्रशंसनीय है।

लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती।

प्रशासन की कार्रवाई चाहे जितनी भी साहसी हो, एक ज़रूरी सवाल अब भी हवा में झूल रहा है — इन फैक्टरियों से पहले जो माल बाजार में गया, उसका क्या?

अब तक की कार्रवाइयों में ज़ोर ‘अवैध’ शराब पर है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि यह शराब ‘नकली’ थी — ऐसा कहना जनता की ओर से ज्यादा सही लगता है। असल में बोकारो के विभिन्न हिस्सों में इन नकली शराबों की सप्लाई पहले से ही हो रही थी। उपायुक्त की निगाह उन मिनी फैक्टरियों पर पड़ी जो खुलेआम ज़हर का कारोबार कर रही थीं, लेकिन अभी भी खुदरा बाजार, ढाबे, बार और होटलों में इन जहरीली बोतलों की मौजूदगी की संभावना बनी हुई है।

ज़मीनी स्तर की रिपोर्टिंग बताती है कि कई उपभोक्ता शिकायत कर चुके हैं कि नामी ब्रांड की बोतलों से नकली शराब निकली है। यह ‘ब्रांडेड पैकेजिंग में लोकल ठर्रा’ बेचने का खेल नया नहीं है। विशेष बात यह है कि जब नकली माल की खपत तेज करनी होती है, तो अचानक बाकी ब्रांड की सप्लाई बाजार से ‘गायब’ कर दी जाती है, जिससे मजबूरी में शराबी वही खरीद लेता है जो उसे मिलता है — और फिर वही ज़हर, दोस्ती की महफ़िलों में गिलास दर गिलास उतरता चला जाता है।

फिर दुकानदार को गालियाँ दी जाती हैं, दो-चार दिन शिकायतें होती हैं, और सबकुछ फिर से पहले जैसा। लेकिन क्या प्रशासन इस ‘शराबी-चक्र’ से अनभिज्ञ है? ज़ाहिर है नहीं।

तो फिर सवाल यह है कि सिर्फ मिनी फैक्टरियाँ तोड़ी जा रही हैं, जबकि बाजार की निगरानी क्यों नहीं हो रही? क्या कारण है कि बोकारो के ढाबों, होटल बारों और लाइसेंसी दुकानों में औचक छापेमारी अब तक नहीं हो पाई है? क्या प्रशासन उस दिन का इंतज़ार कर रहा है जब नकली शराब पीने से जिले में पहली मौत दर्ज हो?

अगर प्रशासन वाकई सजग है — जैसा कि हाल की कार्रवाई दर्शाती है — तो अगला तार्किक कदम यही होना चाहिए कि संपूर्ण शराब विक्रय तंत्र की गुणवत्ता जांच करवाई जाए। इसका मतलब है कि हर बोतल की सत्यता, हर डिलीवरी की पारदर्शिता और हर दुकान की निगरानी सुनिश्चित हो। क्योंकि अवैध निर्माण के स्रोत को खत्म करने के साथ-साथ नकली उत्पादों के वितरण चैनल को तोड़ना भी जरूरी है।

और बात सिर्फ़ सुरक्षा की नहीं है, ये बात जनविश्वास की है। आम लोग अब प्रशासन से अपेक्षा कर रहे हैं कि वे दिखावे से आगे बढ़कर एक संपूर्ण रणनीति के तहत काम करें। अगर नकली शराब फैक्ट्रियाँ खत्म हो रही हैं, तो उनका माल कहां गया — यह जांच भी उतनी ही आवश्यक है।

जनता का एक वर्ग तो यहां तक कह रहा है कि या तो प्रशासन उन्हें नशामुक्त करे — या फिर कम से कम गुणवत्तापूर्ण शराब मुहैया कराए। नकली शराब तो कतई नहीं। ये बात हास्यास्पद लगे, मगर गंभीर भी है। यह उस हताशा को दर्शाता है जिसमें जनता को भ्रष्ट व्यवस्था से शिकायत तो है, लेकिन उससे मुक्ति की उम्मीद नहीं रह गई।

बोकारो प्रशासन के पास अब दो ही विकल्प हैं: या तो वे तात्कालिक प्रेस रिलीज़ की राजनीति से ऊपर उठकर व्यापक व दीर्घकालिक अभियान चलाएं, जिसमें थोक से लेकर फुटकर तक हर शराब विक्रेता की जांच हो। या फिर इंतज़ार करें उस दिन का, जब एक नकली बोतल से हुई मौत राज्य को फिर राष्ट्रीय स्तर की शर्मिंदगी की ओर ले जाए।

अभी वक्त है — प्रशासन कार्रवाई कर रहा है, यह अच्छी बात है। लेकिन यह कार्रवाई दिखावटी न हो, यही जनता की उम्मीद है। क्योंकि बोकारो का शराबी अब सिर्फ़ नशे में नहीं, ठगा हुआ भी है।

Translate »